जीवन को सही से जीने क लिए लोगो ने अहंकार को प्रथम स्थान दिया है

जीवन को सही से जीने क लिए लोगो ने अहंकार को प्रथम स्थान दिया है उन्होने ये मान लिया की ये एक ऐसा हथियार जो आपको हमेशा सबसे ऊपर रखेगी
अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। यदि अहंकार पूरी तरह समाप्त हो जाए, मन से मिट जाए, तो जीवन अत्यंत सुखमय हो सकता है। दुर्भाग्यवश, अहंकार हर ओर व्याप्त है—जीवन की सार्थकता ही अहंकार का रूप ले चुकी है, और यही सबसे बड़ी विडंबना है।
कोई जाति का अहंकार करता है, कोई धन का, कोई पद का, कोई शरीर की सुंदरता का, तो कोई अपने ज्ञान का। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह अहंकार आत्मा का नहीं, बल्कि शरीर और मन का है। जबकि शरीर नश्वर है, क्षणभंगुर है। राजा हो या भिखारी, मृत्यु के बाद दोनों के शरीर समान रूप से नष्ट होते हैं। एक राजा की निष्प्राण देह पर भी वही मक्खियाँ बैठेंगी जो एक भिखारी के शव पर बैठेंगी।
शरीर का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है, और राजा एवं भिखारी दोनों का शरीर समान तत्वों से बना है। न तो किसी के पास चार हाथ होते हैं, न दो दिल या चार गुर्दे। मृत्यु के बाद सत्ता और वैभव का भी कोई अस्तित्व नहीं रहता। आत्मा भी एक ही ईश्वर का अंश है, जैसे एक ही सागर की बूंद। फिर भी, शरीर के विकार—काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार—मनुष्यों के व्यवहार और भाषा में अंतर उत्पन्न कर देते हैं।
इन विकारों में सबसे प्रबल अहंकार है, जो मनुष्य को सच्चे सुख और शांति से दूर कर देता है। वास्तव में, यह शरीर मात्र एक जोड़ है, जिसे नश्वरता को स्वीकार कर नम्रता और विनम्रता का मार्ग अपनाना चाहिए।
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