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पुराणों में सूर्य का एक नाम पितर भी

पुराणों में सूर्य का एक नाम पितर भी; सूर्य का पितरों से संबंध 》सू्र्य के जरीये ही श्राद्ध हमारे पितरों तक पहुंचता है। ज्योतिष में सूर्य आत्मा का कारक ग्रह होता है। इसलिए जब सूर्य अपने ही नक्षत्र में हो तब श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शान्ति मिलती है l सूर्य किरण के जरीये चंद्रमा से आते हैं पितर सूर्य की हजारों किरणों में जो सबसे खास है उसका नाम ‘अमा’ है। उस अमा नाम की किरण के तेज से सूर्य सभी जगहों को रोशन करता है। उस किरण के जरीये ही चंद्रमा के उपरी हिस्से से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्ध पक्ष का महत्व बताया गया है।
🌝 चंद्रमा का पितरों से संबंध: धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि हमारे पूर्वज जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं, वे पितर बन जाते हैं। इसके बाद उनका निवास स्थान चन्द्रमा का उपरी हिस्सा होता है। विपरीत दिशा में होने के कारण उसे हम देख नहीं सकते हैं। हमारे धर्मशास्त्रों में इसे ही पितृलोक कहा गया है।

💦 सूर्य को जल चढ़ाने से भी पितरों को तृप्ति मिलती है 》पुराणों में कहा गया है कि आर्थिक स्थिति या देश, काल, परिस्थिति के मुताबिक अगर श्राद्ध करने की स्थिति में न हो, समय की कमी हो या जरूरी चीजें न हो तो सिर्फ सूर्य को जल चढ़ाने और जल चढ़ाते वक्त भगवान सूर्य से पितरों की संतुष्टि की प्रार्थना करनी चाहिए।
🌇 आदित्य काल पुरुष की आत्मा: वैज्ञानिक तथ्य (काल = समय, पुरुष = अस्तित्व; वह प्राणी जो स्वयं को समय से बांधता है)।आदित्य का सामान्य अर्थ है वे जो असीमित हैं। आदित्य का तात्पर्य आदिम तत्वों वाले प्रथम पीढ़ी के तारे से हो सकता है और साथ ही उच्च क्रम के तत्वों की उच्च सांद्रता वाले कई अगली पीढ़ी के तारों वाली आकाशगंगा से भी हो सकता है।
हमारी आदित्य, मिल्की वे गैलेक्सी, कहती है कि आदित्य हृदयम में बारह ‘आत्माएँ’ हैं या बारह घटकों से बनी हैं। इसे ‘द्वादशा-आत्मा’ कहते हैं। विज्ञान कहता है कि मिल्की वे गैलेक्सी बारह तत्वों (मुख्य रूप से) से बनी है। वे हाइड्रोजन, हीलियम, ऑक्सीजन, कार्बन, नियॉन, आयरन, नाइट्रोजन, सिलिकॉन, मैग्नीशियम, सल्फर, पोटेशियम और निकल हैं।
🐚 भगवान विष्णु परम सत्य हैं; जिनके चरण कमलों के दर्शन के लिए सभी देवता सदैव आतुर रहते हैं। सूर्यदेव की तरह वे अपनी ऊर्जा की किरणों से सबमें व्याप्त हैं। अपूर्ण आँखों को वे निराकार प्रतीत होते हैं।”

तद् विष्णुः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूर्यः दिव्या चक्षुर आततम
हम उन आदि भगवान गोविन्द की पूजा करते है जिनका तेज लाखों ब्रह्माण्डों के प्रकाश का स्रोत है।
‘यस्य प्रभाप्रभावतो जगद्अण्डकोटि_ ‘ ब्रह्मसंहिता (५.४०)

🪔 आदि भगवान गोविंद को चरण नमन सूर्य देव से प्रार्थना:

ऊँ ह्रीं हंसः सूर्याय नमः ऊँ
सहस्रकिरोनोज्वला।
लोकदीप नमस्ते स्तु नमस्ते कोणवल्लभा।
भास्कराय नमो नित्यं खखोलकाय नमो नमः।
विष्णुवे कालचक्राय सोमयामितेजसे।
हे भगवान! आप हजारों किरणों से प्रकाशित हैं।
हे कन्वल्लभ! आप विश्व के लिए दीपक हैं, हम आपको प्रणाम करते हैं।
विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित भगवान आपको हमारा नमस्कार है।

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