preloader

महाराणा प्रताप जी के जीवन के रोचक किस्से, जिसे आप नहीं जानते होंगे !

  1. महाराणा प्रताप के पास हमेशा 104 किलो वजन वाली दो तलवार थीं। वे इन तलवारों को इसलिए साथ रखते थे कि यदि कोई निहत्था दुश्मन आता, तो उन्हें एक तलवार उसे दे सकें, क्योंकि वे निहत्था व्यक्तियों पर हमला नहीं करते थे। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी उनकी तरह बहादुर था।
  2. महाराणा प्रताप की 11 रानियाँ थीं, जिनमें से मुख्य महारानी अजबदे पंवार थीं, और उनके 17 पुत्रों में से अमर सिंह महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी और मेवाड़ के 14वें महाराणा बने। महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था। कहा जाता है कि इस महाराणा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं।
  3. महाराणा प्रताप की जान को 1576 में उनके और अकबर की सेना के बीच हुई युद्ध में एक वफादार मुस्लिम ने बचाया। अकबर की सेना को मानसिंह ने नेतृत्व किया था। मानसिंह के साथ 10 हजार घुड़सवार और हजारों पैदल सैनिक थे, लेकिन महाराणा प्रताप केवल 3 हजार घुड़सवारों और मुट्ठी भर पैदल सैनिकों के साथ लड़ रहे थे। इस दौरान मानसिंह की सेना ने महाराणा पर हमला किया था, लेकिन महाराणा के वफादार हकीम खान सूर ने उन्हें बचाया और उनकी जान बचा ली। कई बहादुर साथी जैसे भामाशाह और झालामान भी इस युद्ध में महाराणा की जान बचाते हुए शहीद हो गए थे।
  4. भाई शक्ति सिंह प्रतिकूल हो गए थे, फिर प्रेम हल्दीघाटी के बाद जागा। जब महाराणा बच निकले, तब उन्हें पीछे से आवाज़ आई- “हो, नीला घोड़ा रा असवार.” महाराणा पीछे मुड़े, तो उनका भाई शक्तिसिंह आ रहा था। महाराणा के साथ शक्ति की सहायता नहीं थी, इसलिए वह अकबर की सेना में शामिल हो गए और उसके मुख्य शत्रु के खिलाफ लड़ रहे थे। युद्ध के दौरान शक्ति सिंह ने देखा कि महाराणा के पीछे दो मुगल घुड़सवार हैं। तो उसका पुराना भाई-प्रेम जागा और उन्होंने दोनों मुगलों को मारकर महाराणा के पास पहुंच गए।
  5. सारी जनता के साथ राणा की सेना के लिए राणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ किले में हुआ। यह किला दुनिया की सबसे पुरानी अरावली पर्वत श्रृंखला के एक पहाड़ी पर स्थित है। भीलों की कूका जाति ने राणा का पालन-पोषण किया था और उनसे बहुत प्रेम किया। वे राणा के आंख-कान थे। जब अकबर की सेना ने कुम्भलगढ़ को घेर लिया, तो भीलों ने मुकाबला किया और तीन महीने तक अकबर की सेना को रोका। एक दुर्घटना के कारण किले का पानी गंदा हो गया और महाराणा को कुछ दिनों के लिए किला छोड़ना पड़ा, जिससे अकबर की सेना ने उसे कब्जा कर लिया। लेकिन अकबर की सेना वहाँ अधिक दिनों तक टिकी नहीं और फिर से कुम्भलगढ़ का राजा महाराणा के हाथ में आ गया। इस बार महाराणा ने पड़ोसी राज्यों को अकबर से मुक्त कर लिया।
  6. जब महाराणा प्रताप जंगल-जंगल भटक रहे थे, तो एक दिन पांच बार भोजन बनाया गया और प्रत्येक बार उन्हें भोजन को छोड़कर भागना पड़ा। एक बार प्रताप की पत्नी और उनकी पुत्रवधू ने घास के बीजों से रोटियां बनाईं। उनमें से आधी रोटियां बच्चों को दी गईं और बची हुई आधी रोटियां दूसरे दिन के लिए रख दी गईं। इसी समय प्रताप ने अपनी लड़की की चीख सुनी। एक जंगली बिल्ली ने लड़की के हाथ से रोटी छीनी और भाग गई, जिससे लड़की के आंसू टपक आए। इस दृश्य ने राणा का दिल भी दुःखित किया। अधीर होकर उन्होंने उस समय के राज्याधिकार की निंदा की, जिससे उन्हें ऐसे करुण दृश्य देखने को मिले। इसके बाद अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए उन्होंने अकबर से मिलने की इच्छा जताई।
  7. अकबर भी तारीफ किए बिना नहीं रह सका जब महाराणा प्रताप अकबर से हारकर जंगल-जंगल भटक रहे थे। अकबर ने एक जासूस को महाराणा प्रताप की खोज की जानकारी लेने के लिए भेजा। गुप्तचर ने बताया कि महाराणा अपने परिवार और सेवकों के साथ बैठकर खाना खा रहे थे, जिसमें जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं। जासूस ने बताया कि किसी को दुःखी नहीं था, न उदासी महसूस की गई। अकबर का ह्रदय भी इस बात के लिए प्रभावित हुआ और महाराणा के प्रति उनके ह्रदय में सम्मान उत्पन्न हुआ। अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के द्वारा प्रताप की प्रशंसा सुनी थी। उन्होंने अपनी भाषा में लिखा, “इस संसार में सभी नाशवान हैं, पर महाराणा ने धन और भूमि को छोड़ दिया, पर उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिंदुस्तान के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है।” उनके लोग भूख से बिलखते उनके पास आकर रोने लगे। मुगल सैनिक इस प्रकार उनके पीछे पड़ गए थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर भी नहीं मिल पाता था और सुरक्षा के कारण भोजन छोड़कर भागना पड़ता था।
  8. महाराणा प्रताप की 11 पत्नियाँ थीं, जिसमें से महाराणा प्रताप की कुल 11 पत्नियाँ थीं। उनकी मृत्यु के बाद, सबसे बड़ी रानी महारानी अजाबदे का बेटा अमर सिंह पहले राजा बना।
  9. महाराणा प्रताप को बचपन में प्यार से “किका” नाम से बुलाया जाता था।
  10. हल्दी घाटी के युद्ध को टालने के लिए अकबर ने छह बार महाराणा प्रताप के पास अपने शांति दूतों को भेजा, लेकिन राजपूत राजा ने हर बार अकबर के प्रस्ताव को नकारा।
  11. हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने केवल 20 हजार सैनिकों के साथ मुगल बादशाह अकबर के 80 हजार सैनिकों का सामना किया। फिर भी अकबर महाराणा प्रताप को झुकाने में असमर्थ रहा।
  12. महाराणा प्रताप के प्रिय और वफादार घोड़े ने भी दुश्मनों के सामने अद्भुत वीरता का परिचय दिया था, लेकिन उसी युद्ध में चेतक मृत्यु हो गई थी। आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की समाधि है।
  13. महाराणा प्रताप जितने ही बहादुर थे, उतने ही दरियादिल और न्याय प्रिय भी थे। एक बार उनके पुत्र अमर सिंह ने अकबर के सेनापति रहीम खानखाना और उसके परिवार को बंदी बनाया था, जिसको महाराणा ने उन्हें छुड़वाया था।

आपको मंदिर क्यों जाना चाहिए? इसके लाभों को जानें।

आपको अधिक से अधिक मंदिर क्यों जाना चाहिए, और इसके लाभ के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़ें:

बहुत से लोग रोजाना मंदिर जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि नियमित रूप से मंदिर जाने के क्या-क्या फायदे होते हैं? आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

मंदिर जाना एक सत्कर्म है, जो मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति में सहायक होता है। रोजाना मंदिर जाने से न केवल मन को सुकून मिलता है, बल्कि अच्छे विचारों से चित्त भी प्रसन्नता भी बनी रहती है।

  • मंदिर जाने पर निर्भीकता और सत्कर्मों में रमने की भावना उत्पन्न होती है। बहुत से लोग जीवन के संघर्षों में मंदिर जाकर शांति पाते हैं।
  • नियमित रूप से मंदिर जाने पर मन का भय दूर होता है, और व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा में सुधार करता है।
  • मंदिर जाने से बुद्धि का विकास होता है, और व्यक्ति अपने दिमाग से संघर्ष करने की क्षमता प्राप्त करता है।
  • इसके अलावा, मंदिर जाने से अच्छे कर्म करने की भावना और धार्मिक उत्साह भी बढ़ता है।
  • इसलिए, मंदिर जाने के फायदे हैं और इसे अपने जीवन में शामिल करना बहुत महत्वपूर्ण है।

मंदिर जाने के अन्य फायदे इस प्रकार हैं:

  1. आध्यात्मिक संवेदना का विकास: मंदिर जाने से व्यक्ति की आध्यात्मिक संवेदना में सुधार होता है। यहाँ पर उन्हें ध्यान, ध्यान, और आध्यात्मिक अध्ययन करने का अवसर मिलता है।
  2. सोचने का स्थान: मंदिर एक स्थान है जहाँ व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली समस्याओं और संघर्षों को सोच सकता है। यहाँ पर उन्हें अपने मन की शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  3. सामाजिक संवाद: मंदिर जाने से व्यक्ति का सामाजिक संवाद बढ़ता है। यहाँ पर उन्हें अपने समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ संवाद करने का अवसर मिलता है।
  4. सेवा का अवसर: मंदिर जाने से व्यक्ति को सेवा करने का अवसर मिलता है। वहाँ वह दान, चारित्रिक शिक्षा और समर्थन प्रदान करने के लिए सक्रिय रहता है।
  5. ध्यान और शांति: मंदिर जाने से व्यक्ति अपने मन को शांत कर सकता है और ध्यान केंद्रित कर सकता है। यह उनके जीवन में स्थिरता और शांति लाता है।
  6. सामर्थ्य और सहयोग: मंदिर जाने से व्यक्ति को सामर्थ्य और सहयोग मिलता है। यहाँ पर वह अपनी आत्मविश्वास बढ़ाता है और अन्यों के साथ मिलकर समस्याओं का समाधान करता है।
  7. आत्म-परिचय: मंदिर जाने से व्यक्ति को अपने आत्म-परिचय की दिशा मिलती है। यहाँ पर वह अपने आत्मा के साथ संवाद करता है और अपने धार्मिक और मौलिक विचारों को समझता है।
  8. धार्मिक शिक्षा: मंदिर जाने से व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा का मौका मिलता है। यहाँ पर उन्हें वेद, पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के ज्ञान का अवलोकन मिलता है।

मंदिर जाने से अनेक लाभ होते हैं और इसलिए इसे अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए।

 

शुभ कार्य की शुरुआत से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है,क्यों?

किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। माना जाता है कि उनके बिना कोई भी पूजा सफल नहीं होती। इसीलिए, अन्य सभी देवताओं की पूजा से पहले भगवान श्री गणेश की आराधना की जाती है। वे विघ्नहर्ता भी माने जाते हैं। उनकी पूजा से सभी कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं।

जब भगवान श्री गणेश का नाम लिया जाता है, तो लोगों के मन में कई प्रेरक कथाएँ उत्पन्न होती हैं, जिसमें से एक भगवान श्री गणेश के सिर कटने से जुड़ी होती है। अक्सर, लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर उनका सिर क्यों कटा था? उनका सिर हाथी का क्यों है? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल, उनका सिर कटने के बाद कहां गया? यह सभी के मन में कौतूहल पैदा करता है।

शिव पुराण के अनुसार, भगवान श्री गणेश का सिर इसलिए कटा था:

माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से भगवान श्री गणेश को उत्पन्न किया था। जब माता पार्वती स्नान के लिए गुफा में जा रही थीं, तो उन्होंने अपने बच्चे को आदेश दिया कि किसी को भी अंदर नहीं आने दें। जब भगवान शिव आए तो उनका बच्चा उन्हें अंदर नहीं आने दिया। नाराज होकर, भगवान शिव ने उसका सिर काट दिया। माता पार्वती की चीखें सारे ब्रह्मांड को कांप गई। इसके बाद, भगवान शिव ने एक हाथी का सिर उसके शरीर में जोड़ दिया। इसलिए, भगवान श्री गणेश का सिर हाथी का है और वे इस रूप में पूजे जाते हैं।

« Newer Posts